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रियल एस्टेट की बात करें तो आए दिन इसमे कोई ना कोई बदलाव आते रहते हैं। ऐसा ही बदलाव भारतीय सरकारी रियल एस्टेट नीतियों से भी है। सरकारी नीतियां भारतीय रियल एस्टेट को सीमित रूप से प्रभावित करती हैं। यह निम्नलिखित तरह से हो सकता है:
1. निवेशकों को प्रवेश की राह: सरकारी नीतियां स्थानीय और अन्य देशों के निवेशकों को भारतीय रियल एस्टेट में प्रवेश करने को प्रोत्साहित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, विदेशी प्रतिबंधों को खत्म करने से बाहरी निवेशकों को अधिक से अधिक अवसर मिलते हैं।
2. विदेशी प्रतिबंध: अन्य देशों के निवेशकों को भारतीय राज्यों में निवेश करने से रोकने के लिए सरकार विदेशी प्रतिबंधों का उपयोग कर सकती है। यह स्थानीय निवेशकों के लिए मुश्किल हो सकता है, लेकिन वे अपनी स्थानीय मार्केट को बढ़ावा देने के लिए सक्षम होंगे।
3. करों का समीक्षण: सरकारी नीतियां आमतौर पर रियल एस्टेट की अन्तर्भागीय करों की जांच करती हैं जो निवेशकों को निवेश करने से पहले ध्यान में रखना चाहिए। कई उदाहरण हैं जहां सरकार ने रियल एस्टेट के लिए ज्यादा करों का समीक्षण किया है जो निवेशकों को इस उद्योग में निवेश करने से दूर रखता है।
4. अधिकृतीकरण और निर्वाहकीय नीतियां: सरकार रियल एस्टेट को अधिक आकर्षक और व्यावसायिक बनाने के लिए अधिकृतीकरण या निर्वाहकीय नीतियों को लागू कर सकती है। ये नीतियां भू-समस्याओं, भू-अभाव और अन्य समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती हैं।
5. दायित्व: सरकार अक्सर रियल एस्टेट के मामलों को नियंत्रित करने और इस उद्योग को स्वस्थ और निष्पक्ष बनाने के लिए दायित्व लेती है। यह नियंत्रण निवेशकों को भरोसा दिलाता है और उन्हें अधिक सुरक्षा का एक आश्वासन प्रदान करता है।
इन सब के अलावा, सरकारी नीतियां भारतीय रियल एस्टेट को एक स्थिर और स्थायी उद्योग बनाने में मदद कर सकती हैं। यह उद्योग आम जनता के लिए नहीं है, लेकिन सरकारी नीतियां सुनिश्चित करती हैं कि रियल एस्टेट उद्योग के साथ निवेशकों के लिए विश्वसनीय है।